Thursday, August 21, 2014


Monday, August 4, 2014



कोन कहता है ?  साई बाबा भगवान थे उन्होने अपने जीते जी कभी नही कहा की में भगवान हू मेरी पूजा करो वो तो एक संत फ़कीर थे तभी तो हम उन्हे साई बाबा कहते है।


साई राम,साई उनका असली नाम नही था वो तो एक नाम दीया गया था साई शब्द का अर्थ सत्य से है। राम का अर्थ भगवान से है। तो कहने का मतलब राम ही सत्य है।
बाबा शब्द सांसारिक शब्द है। उन्होने समाज के लीए  अच्छे कर्म किये ,भक्तो के कषटो का निवारण किया करते थे।  गरीबो की सहाएता करना ही उनका मूल मंत्रा था ।
उन्हे अपने हाथ से भोजन पकाना बाद में स्वयं खिलाना ,उसी से सारे कषटो का निवारण कर देते थे । असाध्या से असाध्या रोगो से मुक्ति  दिलाते थे । तो आप सोचे की जिससे मनुसय या प्राणी के सब  कषट दूर हो रहे हो उसे भगवान ना कहे तो क्या कहे जो हुमारी परेसानी में काम आये वो भगवान से कम नही होता जैसे कोई डॉक्टर बड़ा असाध्या रोग ठीक कर दे तो उससे भगवान मानते है की नही ?
लोगो में श्रधा बढ़ती गयी भक्त बड़े तो उन्होने साई मंदिर बनवाना शुरू कर दिये की सिरडी ना ज़ाकर अपने पास ही दर्शन कर सके ।
आप देखे कितने गुरुओ के आश्रम है। जगह् जगह् पर वहा भी उनकी तस्वीर या मूर्तिया बनी हुई है।
वो लोग जीते जी अपनी पूजा करवा रहे है। 


जाती ना पूछो साधु की,पूछ लीजिए ज्ञान मोल  करो तलवार का,पड़ा रहन  दो म्यान...


फ़कीर की तो कोई जाती विशेष नही होती है। आज के साधुओ की जाती के विषय में कोई नही पूछ रहा है। ये कोन लोग है। कहा से आए है।  कैसे बने साधु आधे से जयादा तो अपने कर्तब्यो से दूर भागने के लिये साधु बन जाते है। ओर पता नही क्या क्या ।
पर साई बाबा हिन्दू थे । साई सत चरित्रा में लिखा है की हिन्दुओ की रीति से उनके कान छिड़े थे। वे हमेशा धुनी रमाते रहेते थे। जो मुसलमानो के विरुध है। ओर मुसलमानो को मस्ज़िद में नवाज़ पड़ने के लिए एकत्र किया करते थे।
एक भक्त जिसका नाम नाना साहब चंदोरकेर था।  उन्होने बाबा को बहुत ही करीब से देखा तो उन्होने बताया की बाबा की सुननता नही हुई है। ये बात साई सत चरित्रा अध्याय 7 में है ।
वो जन्माष्टमी राम नवमी का त्योहार मस्ज़िद में तुलसी पूजा करवाते थे। यवनो द्वारा ताजिये का जुलुस ओर चँदनोत्सव करवाया करते थे।

आज भी ये सभी त्योहार  पहले की भाती मनाये जाते है।  आज तक ने कोई हादशा हुआ ना बीमारी फैली ,सच्चा संत ना ये देखता है। की फला प्राणी किस जाती से है। मैं इसके यहा का पानी पियु या नही , खाउ या नही वो सभी जीवो में परमात्मा का ही बास देखता है। साई को  गीता, भागवत, विष्णु सहस्त्रनाम आदि का भी ज्ञान था।
 उन्होने अध्याय 39 में गीता के एक श्लोक का अर्थ एक एक शब्दो का बताया है। व्याकरण  सम्मत अर्थ समझाया है। अध्याय 45 में बाबा ने भक्तो से कहा की जब में शयन करता हु तो महालसापति जो साई के पास सोते थे। उन्हे अपने बाज़ू में बैठाकर कहता हू की मेरे ह्दया पर अपना हाथ रखकर देखते रहो की कही मेरा भागबत जाप बंद ना हो जाये ओर निद्रित देखो तो तुरंत जगा दो ,तो भगवान हरि का जाप तो हिन्दू ही कर सकता है न की कोई मुसलमान ।
साई पांच धरो से भिक्षा मांगते थे वैसे वो भी हिन्दुओ के ही होते थे भिक्षा मिली तो मिली सही न मिली तो सही,सभी को मिला कर एक कुंडी में डाल लिया करते थे।
 ओर उनके साथ कुत्ते बिल्ली बंदर सब उसी कुंडी में खा लेते थे।
 ये कार्या तो कोई विशेष ही कर सकता है ना ?


आज है कोई संत  जो खाने का स्वाद नही जानता हो ? उनकी जिव्हा पर कोई स्वाद नही था। वो कई दिनो तक नहाते नही थे,समाधि में ही लीन रहते थे।  उन्हे अपने तन की कोई परवाह नही थी।  जयादा गर्मी का कोई भान नही था। वो एक फटे पुराने कपडो में रहते थे। ,साफा ओर लंगोट ही उनके कपड़े थे ।उन्हे काचन् (पैसा) की भी कोई इच्छा नही थी। जो देता था ।तो वो उसी दिन दान में या गरीबो में खर्च कर दीया करते थे। उन्होने सभी आस पास के सनातन धर्मा मंदिरो को अपने हाथ से जीर्नोधाऱ करवाया।  उस समय के विद्वान से विद्वान बकिल ,जज,डॉक्टर,ज्योतिष उनके परम भक़्त थे। उन्मे मुसलमान नाम मात्र के ही थे ।तो आप सोचे एक विद्वान  ज्योतिष पण्डित किसी पर क्यों  विस्वास  करेगा। कुछ ना कुछ तो बात होगी ना ऐसे बाबा में, साई सगुण पूजा को प्रेरित करते थे न की निगुण को कहते थे। जब तक सगुण नही पहचानोगे तब तक निगुण नही पहचान सकते। बाबा कहते थे। तुम अपने ईष्ट को दृणता से पकड़े रहो वो तुमको परमात्मा से मिलवा देगा। ,न की वो ये कहते थे कि मेरी पूजा करो में तुमको आत्मदर्शन करवा दूंगा ।जैसे की आज के साधु संत कहते है। में तुम्हे एसा कर दूंगा वैसा करवा दूंगा ।


बाबा ने नवधा(9 प्रकार की पूजा) भक्ति में भक्ति मार्ग को ही श्रेष्ठ बताया।उन्होने अपने गुरु की भक्ति की उनके गुरु ने उन्हे आत्म साक्षात्कार करवाया ।


उनके गुरु साक्षात परमात्मा सवरूप थे ।उन्हे गुरु की क्रपा से उन्हे अशीम शक्तिया प्राप्त हो चुकी थी। वो स्वय को भगवान का सेवक समझते थे । कहते थे में तो उनका दास हु ,वो किसी को भागवत किसी को विष्णु सहस्त्रनाम , गीता ,एकनाथी भागवत पाठ करने को कहते थे।
अध्याय  4 सत चरित्रा एक भक्त को खंडोवा यानी बिट्ठल का संचार हुआ तो सिरडी वासियो ने पूछा ये कोन है। तो उन्होने एक कुदाली मगवाई,  एक निर्दीस्ट जगह् पर खोदने को कहा तो एक गुफा मिली उसमे 4 दीपक ,गो मुखी इमारत ,तख्ते ,मालाए , पूजा का समान मिला ओर् कहा इसने यहा पर 12 ब़रसो तक तपस्या की है।
इसे बंद कर दो तो कोई साधारण मनुसय कर सकता है क्या?
क्या गीता में भगवान ने कहा है ? कि संत ही मेरा जीता जागता सवरूप है कृष्णा के भी गुरु थे राम के भी थे। वो साक्षात अवतार थे कही नही कुछ भी नही लिखा है। राम ने इनकी कृष्णा  ने उनकी पूजा की।
भगवान अवतार लेते है रक्षेसो का संहार करने के लीए,
संतो का तो अंदाज़ निराला होता है। वो ह्दया परिवर्तन करके व्यक्ति को सत्मार्ग पर लगा देते है। बाबा ने कोई चेला नही बनाया न ही किसी काम में कोई मंत्रा ही फुका, न उनके पास इतनी सम्पती थी की कोई उनका उत्तेराधिकारी बने उन्हे पता था भविसय में उत्तराधिकारी पर विवाद होगा।
जैसा आज्ञ कल देखने को मिलता है। 



बाबा ने अपना  मूल ग्रंथ अपने जीते जी लिखवा दिया था।  नही तो लोग यही कहते  की सब मन गरन्थ कहानी है जैसा की अब  शंकराचार्या जी कहे रहे की  साई ये है वो है ।



कुछ भक्त आज भी है जिन्होने बाबा मानने से पहले उन्हे बारीकी से सर्च किया है ।
बाबा 60 बरसो तक सिरडी रहे ,उन्होने कभी रेल यात्रा ,हवाई यात्रा  तक नही की पर उन्हे सात समंदर तक का ज्ञान था।  क्या साधारण वयक्ति में इतना ज्ञान च्मत्कार हो सकता है। पानी से दीपक जलाना ,दमा का रोग चिलम पीला कर ठीक करना ,अतिसार का रोग मूँगफली खिलाकर ठीक करना ,हैजा का रोग महामारी का रोग आटा डलवाकर।
गंगा हमारी अम्रत दायनी मा सामान है। वो सभी के पापो को धोती है। गंगा भी साधु संतो के चरणो के लीये लालायित रहती है।
कोई ऐसा कहे की साई भक्तो को गंगा  स्नान नही करना चाहिये तो ऐसा कहना अनुचित होगा हा गंगा चाहे तो साई भक्तो को दंड दे तो मान्या होगा।
बाबा का एक भक्त मेधा था उसने 12 महीने  बाबा को  स्नान  अपने हाथ से कराया।
साई सिरडी के बाहर जाते नही थे। तो वो 8 कोस दूर से जल लेकर पहले शिव लिंग  फिर साई को स्नान करवाता था बाबा ने उसके लीए एक शिवलिंग गुरु ईस्तान में भी इस्तापित करवाया जो आज भी है ये धटना साई चरित्रा अध्याय 28 से है।
ये भी कहना अनुचित है। की साई भक्त सनातन धर्म मंदिर में न जाये सभी भक्तो की अपनी आस्था है। वो जहा जाये मंदिर ,मस्ज़िद ,गुरुद्वारा ,जिसको जहा सांती मिले जहा मन इछित फल मिलेगा वो वहा जाये स्‍वतन्त्रा है।
हम पूजा करने के लीये किसी व्यक्ति विशेष से अनुमति नही लेंगे जो जैसा कहेगा वो मान लेंगे नही सभी आज सिक्षित है।
पहले था जो धर्म गुरु ने कहा उसको मान लिया आज का जेनरेशन पहले प्रसन पूछता है क्यों करू ऐसा?
साई गायत्री मन्त्रा है। जो  वेद  मन्त्रा में तोड फोड़ करके बनाया है।  पर साई गायत्री मन्त्रा का अर्थ गलत हो तो वो वेद का अपमान कहा जायेगा न की समाज के अछे कर्म की ओर प्रेरित करने के लिये
साई ने अपने भक्तो को उनके ईस्ट रूप में ही दर्शन दीये किसी को गुरु के रूप में ,किसी को राम या कृष्णा के रूप में बाबा को भक्तो के पूर्वा जन्मो के बारे में भी ज्ञान था।
साई बाबा ने सबका मालिक एक इसलिये कहा की आपके धर्म अलग , पंत अलग कर्म अलग पर ईस्वर एक है इसलिये भाई चारे से रहो  एकता बनाये रखो इसलीये में सभी भक्तो से अनुरोध करता हू किसी के बहकावे में ना आकर सत्य क्या है उससे अपने आप पहचाने  अगर आपके पास थोड़ा सा भी वक़्त है। तो साई मंदिर जाकर या खरीदकर साई सत चरित्रा का पाठ करे आपको सब विदित हो जायेगा।
उसमे सब कुछ है क्या सही क्या गलत सब मिलेगा। साई हिन्दू है या मुसलमान ?
जितनी भी सँकाये है सब मीट जायेगी। बिना किसी सहायता के आज साई भक्तो की संख्या बढ़ती जा रही है।  उसमे विधटन पैदा ना होने दे ये अपील करता हू।


अगर इस लेख से किसी को परेसानी हुई हो तो उसके लीये छमा प्रार्थी हू।
रूप अनेक पंत अनेक पर सबका मालिक एक

  ओं साई राम 




POSTED BY ANIL KUMAR SHARMA


sai satcharitra hindi

sirdi sai live

.